मिट्टी, आप और मैं! इस इंजीनियर के बनाये बर्तन में क्या है ख़ास? हो रहा लाखों का बिज़नेस

प्लास्टिक की बोतल और नॉन स्टिक बर्तनों से होते नुक़सान को जानने के बाद बाज़ार में मिट्टी के बने बर्तन, कुकवेयर और बोतल जैसी चीज़ें काफ़ी बिकने लगी हैं। हम सभी इसे अपनी सेहत के लिए फ़ायदेमंद मानकर खरीदते हैं, और इस्तेमाल भी करते हैं। लेकिन जब आपको पता चले कि ये मिट्टी के बर्तन आपके नार्मल प्रोडक्ट्स से भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं तो?

जी हाँ, बाज़ार में मिट्टी के बर्तनों की मांग जितनी बढ़ती जा रही है, इसे बनाने का बिज़नेस भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ रहा है। लेकिन देश की ज़्यादातर जगहों में बन रहे मिट्टी के इन बर्तनों को कोई कुम्हार नहीं, बल्कि मशीन तैयार कर रही है।  

डाई मोल्ड और केमिकल कोटिंग के साथ काफ़ी फैंसी मिट्टी के बर्तन तैयार किए जाते हैं। मिट्टी के बर्तनों की इसी सच्चाई को जानने के बाद, झज्जर (हरियाणा) के डावला गाँव के रहनेवाले नीरज शर्मा को ‘मिट्टी, आप और मैं’ नाम से अपना बिज़नेस शुरू करने की प्रेरणा मिली।  

नीरज वैसे तो एक इंजीनियर हैं, लेकिन पिछले दो सालों से वह अपने गाँव में रहकर ही काम कर रहे हैं। वह केमिकल और डाई मोल्ड के बिना, पारम्परिक चाक में बर्तन तैयार करते हैं और इसे ऑनलाइन देशभर में बेच रहे हैं। अपने गाँव के दो कुम्हारों के साथ उन्होंने इस काम की शुरुआत की थी। आज उनके साथ आठ से ज़्यादा कुम्हार काम कर रहे हैं।  

द बेटर इंडिया से बात करते हुए नीरज बताते हैं, “लोगों में सेहत के प्रति काफ़ी जागरूकता आ गई है। इसलिए वे सही और ग़लत का फ़र्क़ समझने लगे हैं। मेरे साथ कुछ डॉक्टर और न्यूट्रिशियनिस्ट भी जुड़े हुए हैं; जो अपने जानने वालों और मरीज़ों को मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।”

नीरज अपने इस बिज़नेस से हर महीने दो से ढाई लाख रुपये का टर्नओवर भी कमा रहे हैं।  

गाँव में रहने के लिए छोड़ दी शहर की नौकरी 

नीरज के पिता बिजली विभाग में काम करते थे और साथ ही उनकी पुश्तैनी खेती भी थी। नीरज का पूरा बचपन गाँव में ही बीता है। बाद में उन्होंने साल 2016 में रोहतक से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और नौकरी करने के लिए गुड़गांव चले गए। 

नीरज कहते हैं, “मुझे शहर में कई तरह की स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्क़तें होती थीं। सिर्फ़ एक साल शहर में रहकर ही मैंने मन बना लिया था कि मुझे गाँव वापस जाकर अपना कुछ काम करना है।”

हालांकि, उनके परिवारवालों को उनका यह फैसला ग़लत लग रहा था। इसलिए नीरज ने घर पर रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी करना शुरू कर दिया।  

वह गाँव में किसी बिज़नेस की तलाश में भी थे। उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि उनके घर में जिन मिट्टी के बर्तनों में खाना बन रहा है,  एक दिन वह उसी का बिज़नेस करेंगे। 

गांव में रहकर ही मिला बिज़नेस आईडिया 

नीरज के घर में कई तरह के मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल होते थे। कुछ जल्दी टूट जाते और कुछ लम्बे समय तक चलते थे। उन्हें लगता था कि ये बर्तन ज़रूर कोई कारीगर बनाता होगा और यह काफ़ी मुश्किल काम होगा। इस बारे में और जानकारी लेने के लिए वह अपने गाँव के पास की ही एक फैक्ट्री में गए

नीरज कहते हैं, “उस फैक्ट्री में जाकर मुझे काफ़ी आश्चर्य हुआ। मैंने देखा कि यहाँ तो न कोई कुम्हार है और न कोई चाक। यहाँ तो मोल्ड मशीन से बड़ी आसानी से बर्तन तैयार हो रहे हैं। इसलिए मैंने भी यह काम शुरू करने का फैसला किया।”

शुरुआत में नीरज भी मोल्ड और डाई से बर्तन बनाने लगे। उन्होंने देखा कि इस तकनीक से बर्तन बनाने में  कास्टिक सोडा, सोडा सिलिकेट जैसे केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है; जो हमें नुकसान पहुँचाते हैं।  

जिसके बाद नीरज ने मोल्ड छोड़कर गाँव के कुम्हारों से बात करना शुरू किया। मशीनों के आ जाने के बाद इन कुम्हारों के पास ज़्यादा काम नहीं था। नीरज ने भी तय कर लिया था कि मिट्टी के बर्तन बोलकर वह केमिकल वाले प्रोडक्ट्स नहीं बेचेंगे।  

गाँव के कुम्हारों को फिर से दिलाया रोज़गार 

उन्होंने दो कुम्हारों की मदद से अपने प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन बेचना शुरू किया। देखने में भले ही उनके ये बर्तन ज़्यादा रंगीन और चमकीले नहीं थे लेकिन गुणवत्ता में सबसे अच्छे थे। वह बताते हैं कि जैसे ही लोगों को पता चला कि यहाँ केमिकल के बिना सिर्फ़ मिट्टी से बनी चीज़ें बन रही हैं, कई लोग उनका काम देखने आने लगे।  

नीरज ने अपने प्रोडक्ट्स की जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए फेसबुक और यूट्यूब का सहारा लिया।  

उन्होंने बताया, “पहले मैंने Amazon पर अपने प्रोडक्ट्स बेचना शुरू किया था लेकिन वहाँ मुझे ज़्यादा सफलता नहीं मिली। ज़्यादातर लोग चमकदार बर्तन ही ख़रीदते थे।”

धीरे-धीरे उन्होंने दिल्ली और गुरुग्राम सहित आस-पास के शहरों में होने वाले ऑर्गेनिक मेलों में पार्ट लेना शुरू किया। उनके प्राकृतिक रूप से बनें इन प्रोडक्ट्स को कई डॉक्टर्स, और प्राकृतिक उपचार से जुड़े लोग भी खूब ख़रीदते हैं। कई लोग शहर से सिर्फ़ उनके मिट्टी के बर्तन लेने आते हैं। अपने यूट्यूब चैनल ‘मिट्टी, आप और मैं’ के ज़रिए वह मिट्टी के बर्तन के फ़ायदे भी लोगों को बताते रहते हैं।

आज उनके साथ आठ कुम्हार काम कर रहे हैं। इन कुम्हारों ने समय के साथ अपना पारम्परिक काम छोड़ दिया था, लेकिन नीरज ने एक बार फिर से इन सभी को रोज़गार दिया है। 

वह मिट्टी को भी बहुत ध्यान से चुनते हैं।  बर्तन बनाने के लिए वह खेत की मिट्टी का इस्तेमाल नहीं करते। बल्कि इन बर्तनों को बनाने के लिए वह राजस्थान और हरियाणा के पहाड़ों की मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने बताया, “ज़्यादातर खेतों में ख़तरनाक फ़र्टिलाइज़र इस्तेमाल होते हैं; इसलिए जहाँ पहले खेती की जाती थी,  हम वैसी मिट्टी का इस्तेमाल नहीं करते हैं।”  

वह कढ़ाई, बोतल, हांड़ी सहित कई चीज़ें बना रहे हैं।

नीरज काफ़ी खुशी के साथ बताते हैं कि उनके इस स्टार्टअप की वजह से उन्हें गाँव में रहकर काम करने का मौक़ा तो मिल ही रहा है, साथ ही वह कई और लोगों को भी रोज़गार दे पा रहे हैं।

आप ‘मिट्टी, आप और मैं’ से जुड़ने के लिए उनके यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज को फॉलो कर सकते हैं। या उनकी वेबसाइट से इन बर्तनों को खरीद भी सकते हैं।

संपादन – भावना श्रीवास्तव 

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